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आम लोग और सफाई

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एक लोकतांत्रिक देश को चलाने में आम आदमी का बहुत योगदान होता है। लोकतांत्रिक देश में सरकार के साथ आम आदमी की भी देश के प्रति कई  जिम्मेदारियां होती है जो उन्हें व्यक्तिगत तौर पर खुद समझनी होती हैं और निभानी होती हैं। उन सभी में से एक होती है अपने आसपास स्वच्छता का ध्यान रखना। हमारे देश में आम आदमी साफ़ सफाई का ध्यान कैसे रखता है ये ध्यान देने योग्य है -

Common people and cleaning
साफ़ सुथरी जगह 

अपने मोहल्ले की सफाई - हर साधारण आदमी जो अच्छी नौकरी कर रहा होता है और रिटायर होने वाला होता है तो उसका अगला कदम ये होता है की किसी अच्छे शहर में अच्छी जगह जमीन खरीदकर घर बना ले। ज़मीन खरीदना और घर बनाना तक तो ठीक है। लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब बात आने जाने के लिए रास्ता छोड़ने की होती है यहाँ पर ज्यादातर लोग रास्ता छोड़ने के बजाय रास्ता घेरने  लग जाते हैं। और उम्मीद करते हैं की उनके पड़ोस के लोग रास्ता छोड़ेंगे। इससे विवाद तो होता ही है और रास्ता संकरा होने के कारण मोहल्ले में साफ़ सफाई नहीं रहती। बरसात के मौसम में तो ऐसे मोहल्लों की हालत दयनीय हो जाती है।   
Common people and cleaning
संकरा मोहल्ला 

थूकने की आदत - हमारे देश में ज्यादातर लोगों को थूकने की आदत होती है। कहीं रास्ते में चल रहे हैं चलते चलते थूक दिया जैसे इनकी तो कोई जिम्मेदारी ही नहीं है साफ़ सफाई की। कई बार तो मैंने गौर किया है वो लोग जो अच्छी नौकरी से रिटायर है और देश और समाज के बारे में बड़ी बड़ी बातें करते हैं और बातों से ज्यादा थूकते रहते हैं । एक तरफ देश के लिए बड़ी बड़ी बातें और दूसरी तरफ उसी मुँह से थूक कर गन्दगी फैलाना।
Common people and cleaning
थूकना

खाली जगह में कचरा  - ज्यादातर लोगों को कहीं भी कचरा फेंकने की आदत होती है। मैंने ऐसे कई जगहें देखि है जो खाली होती हैं जहाँ लोगों का आना जाना कम रहता है। ऐसी जगहें कुछ समय तक साफ सुथरी और हरी भरी रहती हैं लेकिन समय गुजरने के साथ कचरे के ढेर में बदल जाती हैं क्योंकि लोगों की आदत होती है की खाली जगह पर वहां कचरा फेंकने की। 
Common people and cleaning
खाली जगह में कचरा 
खुली जगहों में कचरा - खुली जगहों से मेरा मतलब ऐसी जगहों से है जो बहुत मशहूर नहीं होती लेकिन ये जगहें घूमने के लिए ,कसरत करने के लिए ,ताज़ी हवा लेने के लिए बहुत ही उपयुक्त होती हैं। ऐसी जगहें लोगों को बहुत पसंद आती हैं। अक्सर लोग ऐसी जगहों पर छुट्टी के समय या अपना अलग से समय निकाल कर जाना पसंद करते हैं और वहां के वातावरण का आनंद लेते हैं। बहुत सारे लोग खाने पीने की चीज़े अपने साथ ले जाते हैं और बाद में कचरा वहां ही छोड़ देते हैं। इस वजह से वो जगह एक साफ़ सुथरी अच्छी जगह से एक गन्दी और बदबूदार जगह में बदल जाती है।
Common people and cleaning
खुली जगहों में कचरा

पुरानी मान्यताएं - कुछ पुरानी मान्यताएं भी काफी हद तक जिम्मेदार है गंदगी फ़ैलाने में ,जैसे नदियों में शव बहाना ,पूजा करने बाद की सामग्री को नदी में बहाना इत्यादि। ये मान्यताएं बहुत पहले से चली आ रही हैं जब लोगों का जीवन एकदम सदा रहा होगा। वातावरण में इतना प्रदुषण नहीं फैला होगा। लोगों की संख्या भी आज के मुकाबले बहुत कम रही होगी। इसलिए उस समय इन मान्यतों से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता होगा।इसके अलावा वो आम लोग जो गरीब हैं और शिक्षित नहीं हैं उनकी आदतें भी गन्दगी फ़ैलाने के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसे लोग शौच ,नहाना, कपडे धोना आदि के लिए पास के नदीयों और मैदानों का इस्तेमाल करते हैं। 
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नदियों में कचरा 
जानवरों के शव - अक्सर ये भी देखने में आता है की जानवरों के शव इधर उधर जैसे सड़क के किनारे या फिर किसी खुली जगह पर  फ़ेंक दिए जाते हैं। ये भी कहना चाहूंगा की हमारे अंदर जानवरों के लिए भी सवेंदना होनी चाहिए। उन्हें भी जीने का हक़ है। हम इंसानो का अपने मतलब के लिए जानवरों का उपयोग करना और उनके साथ बुरा सलूक करना हमारी इंसानियत पर सवाल उठता है। ये इसलिए कहना जरुरी है की सफाई सिर्फ बाहर की ही नहीं हमारे अंदर की भी होनी चाहिए। 
Common people and cleaning
जानवरों के लिए सवेंदना 
ये कहना इसलिए भी जरुरी है क्योंकि आज की दुनिया में जो हो  रहा है वो काफी चिंताजनक है। कही कहीं कोरोना की वजह से हालात बदतर हैं तो कही दो देशों में लड़ाइयाँ हो रही है जहाँ कई लोग मौत के मुंह में जा रहे हैं। इतना सब होने के बावजूद भी हमारे नेताओं का आपस में राजनीती खत्म ही नहीं हो रही है। आम लोग फ़िज़ूल के बातों में उलझे हुए है और अपना मनमुटाव दूर नहीं कर रहे। 
Common people and cleaning
मनमुटाव दूर करें 
अजीब आदतें - लोगों की आदतें भी अजीब होती हैं जो की आसपास के सफाई को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के तौर पर मैं अपना अनुभव बताना चाहूंगा। कभी कभी मेरे गांव से ऐसे रिश्तेदार आते हैं जिनको खुले में शौच की आदत होती है। उन्हें शौचालय में बैठना ठीक नहीं लगता। उनका कहना होता है हमें शौचालय में ठीक नहीं लगता और हमारा पेट भी सही से साफ़ नहीं होता। इसलिए हमें बाहर किसी जंगल में ले चलो।  
ये कहना गलत नहीं होगा की आम आदमी को सफाई के प्रति जागरूक होने की जरुरत है और अपनी सोच और आदत बदलने की जरुरत है। ये भी ध्यान रखना है की सफाई सिर्फ बाहर की नहीं अपने अंदर की भी करनी है।  

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