Skip to main content

Translate in your language

काम और भाग्य और शिक्षा

सुनें 👉


वैसे तो आज कल देश दुनिया की खबर के लिए सूचना प्रौद्योगिकी ने बहुत तरक्की कर ली है। चाहे तो टेलीविजन पर अलग चैनल देख लो ,चाहे तो इंटरनेट के माध्यम से पता कर लो। लेकिन मैं तो अभी भी अख़बार पढ़ना पसंद करता हूँ ऐसा नहीं है की मैं इंटरनेट इस्तेमाल नहीं करता हूँ। लेकिन अख़बार मैं बचपन से ही पढता आ रहा हूँ और इससे एक जुड़ाव भी महसूस करता हूँ। अख़बार पढ़ते समय आँखों पर जोर नहीं पड़ता जैसा की मोबाइल देखते हुए होता है।

life and education
अख़बार 

 
अखबार में समाचार, मनोरंजन ,कहानियाँ ,किसी विषय पर लेख इत्यादि बहुत कुछ होता है पढ़ने के लिए। वो अलग बात है की अखबार में समाचार एक दिन पुराना होता है। लेकिन एक जगह बैठ कर निश्चिंत होकर पढ़ा जा सकता है। कभी कभी कुछ ऐसा पढ़ने को मिल जाता है की हमारा ध्यान उस ओर सबसे ज्यादा आकर्षित हो जाता है। वो पढ़कर हमें कुछ अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है और हम उससे जुड़े मुद्दों पर सोचने लगते हैं। 
आप यह वीडियो भी देख सकते हैं 👇
काम और भाग्य और शिक्षा

life and education
प्रेरणा

एक दिन अख़बार में बेंगलुरू के रमेश बाबू के बारे में पढ़ा। उनकी कहानी में मेहनत और किस्मत दोनों का मेल था। उस खबर के आगे उस दिन मुझे कोई खबर खास नहीं लगी।
एक साधारण नाई से लेकर करोड़पति बनने की उनकी कहानी दिलचस्प है। पिता के निधन के बाद रमेश बाबू ने सैलून संभालना शुरू किया। उन्होंने 1994 में अपने लिए मारुति सुजुकी ओमनी कार खरीदी। एक समय ऐसा आया की वो तीन महीनों की लोन की किश्त नहीं चूका पाए।

life and education
बुरी हालत 

उनकी मम्मी जिस महिला के घर में काम करती थी , उसकी सलाह ने रमेश बाबू की किस्मत बदल दी। उस महिला ने कार किराया पर चलाने की सलाह दी। देखते ही देखते वर्ष 2004 तक उनके पास सात कारें हो गयी थी। उन्होंने सभी कारों को अपनी टूर एंड ट्रेवल कंपनी में लगा दिया। रमेश बाबू की लग ज़री कारों का उपयोग करने वालो में कई बड़ी फिल्मी हस्तियां ,बड़े राजनेता और उधोगपति भी शामिल हैं। 
life and education
आय

वे रोल्स रॉयस कार का हर रोज का 50000 रुपए किराया लेते हैं। ये खबर पढ़ के मन में  कुछ अलग करके करोड़पति बनने की लालसा को जोर मिला हि साथ ही याद आ गयी बचपन की पढ़ी हुई वो कहानी जिसमें एक भीख मांगकर गुजारा करने वाले भिखारी को एक दिन आटे से भरा हुआ मटका मिल जाता है। वह बहुत खुश होता है और उसे ले जाकर अपनी झोंपड़ी के अंदर अपनी चारपाई के ऊपर लटका देता है और चारपाई पर सो जाता है और अमीर बनने के सपने देखने लगता है। 
life and education
सपने देखना 

वह सपने में  देखता है की वह आटा बेचकर मुर्गा और मुर्गी खरीदेगा और जब वो बच्चे देंगे तो उसके पास ढेर सारे मुर्गे और मुर्गियां हो जायेंगे ,ऐसा करते करते वो बहुत सारे जानवर पालेगा और बहुत अमीर हो जायेगा ,बड़े बड़े घरों से उसे रिश्ते आएंगे और फिर एक अमीर और सुंदर लड़की से उसकी शादी होगी और फिर उसके बच्चे होंगे।
बच्चे शरारत करेंगे और वह उनकी पिटाई करेगा ऐसा सपना देखते हुए वह सच मे अपने हाथ पैर हिलाने लगा और एक हाथ मटके को लग जाता है और मटका टूट जाता है और सारा आटा बिखर जाता है। 

life and education
सच्चाई 

दोनों कहानियों में अंतर है एक कामयाब हुआ और दूसरे के सपने हकीकत में आने से पहले ही बिखर गए। एक ने अमीर बनने के सपने नहीं देखे थे और न ही भविष्य की कोई योजना बनाई थी सिर्फ अपनी जिंदगी की उलझनों को सुलझाने की कोशिश कर रहा था ,और दूसरा सपना ही देख पाया। दोनों ही कहानियों में स्पेशल डिग्री की कोई भूमिका नहीं है। अगर इन कहानियों के आधार पर मैं ये कहूँ की जिंदगी ने चलना सिखाया है और डिग्रियों ने बाँटना तो गलत नहीं होगा।
life and education
एहसास

इसका मतलब ये भी नहीं की हमें पढाई नहीं करनी चाहिए और डिग्री नहीं लेनी चाहिए। लेकिन ये जानना जरूरी है की पढाई है क्या ? हम पढाई क्यों कर रहे हैं ?इसकी हमारे जीवन में क्या जरूरत है ? हमारे आसपास के लोगों की पढाई के प्रति कैसी मानसिकता है ? और वो मानसिकता कितना सही है और कितना गलत ? जैसे हमारे समाज में कई तरह के मुद्दे है जिनमें कुछ बातें सही हैं तो कुछ बातें अंधविश्वास हैं। 
life and education
पढ़ाई

पढ़ाई बड़ा ही संवेदनशील मुद्दा है। बच्चे की रुचि क्या करने में है ये बहुत कम लोग सोचते हैं। लेकिन ये पता सभी को है की सभी की रुचि और काबिलीयत एक जैसी नहीं होती है। कोई पढ़ाई में बहुत अच्छा होता है ,कोई किसी एक विषय में बहुत अच्छा होता है ,किसी की संगीत में बहुत रुचि होती है ,किसी को खेल कूद में बहुत रुचि होती है इत्यादि। और ये रुचि छोटी कक्षाओं से ही बच्चों में आ जाती हैं। 

life and education
रुचि 
   
जरूरत होती है उसे समझने और निखारने में मदद करने की। और ये जिम्मेदारी होती है शिक्षकों की और अभिभावकों की। लेकिन ज़्यादातर होता ये है की हुनर के बजाय अधिक से अधिक अंक लाने पर जोर दिया जाता है। जिसके जितने अच्छे अंक आते हैं उसकी स्कूल और समाज में उतनी ही  इज़्ज़त होती है। माता पिता भी बहुत गर्व महसूस करते है की मेरे बच्चे बहुत अच्छे अंक ला रहे हैं। अच्छे अंक लाने के कई तरीके भी हैं। मेहनत करके या फिर नकल करके।
 
life and education
परिवार 

मेहनत करने में भी दो बातें हैं या तो आप ऐसे परिवार से हैं जिसमें आपको पढाई में मदद मिल जाती होगी यानी घर के सदस्य आपको पढाई में मदद करते होंगे और आप बहुत मन लगाकर पढ़ते होंगे और सब कुछ आपको समझ आता होगा या फिर आप रटने में बहुत माहिर होंगे। आप सारा पाठ्यक्रम रट लेते होंगे और परीक्षा के बाद भूल जाते होंगे।

अब आप परीक्षा मेहनत करके पास कर रहे हैं या नकल करके लेकिन आप भाग तो अंको के पीछे रहे हैं। क्या अंकों के पीछे भागने में हम सही मायने में जीवन जीने का हुनर सिख रहे हैं ? जो हम किताबों में पढ़ते हैं और परीक्षा देते हैं क्या उससे वाकई में हमारे अंदर वैसे गुण विकसित हो रहे हैं ? या हम पढ़ इसलिए रहे हैं की अच्छे अच्छे अंकों से परीक्षाएं पास हो जाएँ और इंटरव्यू अच्छे से हो जाये कोई अच्छी सी सरकारी नौकरी मिल जाये या फिर कोई ज्यादा पगार वाली प्राइवेट नौकरी मिल जाये। जब हमें कोई पाठ पढ़ाया जाता है चाहे हम किसी भी उम्र के रहे हों या किसी भी कक्षा के विद्यार्थी हों तो क्या हमें पता होता है की हमको जो ये पढ़ाया जा रहा है इसका हमारे जीवन में क्या महत्व है और उपयोग है हम उसे पाठ्यक्रम के रूप में लेते हैं और परीक्षा के बाद भूल जाते हैं। 

life and education
परीक्षा के बाद  

अगर महेश बाबू की कहानी पर गौर किया जाये तो ये समझ में आता है की अपने जीवन के हालात से जूझते हुए उन्हें किसी तरह से ये समझ में आ गया की उनमें क्या हुनर है और वो क्या अच्छा कर सकते हैं और मेहनत करने के बाद उन्हें सफलता मिली।  

वैसे तो ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं लेकिन अनुभव के आधार पर हैं। हो सकता है सभी मेरे विचारों से सहमत न हों क्योंकि सबका अपना नजरिया होता है। 

लेकिन मुझे उम्मीद है कि मेरा यह लेख आपके जीवन को सही दिशा देने में मदद करेगा।

Comments

Popular posts from this blog

वह दिन - एक सच्चा अनुभव

 सुनें 👇 उस दिन मेरे भाई ने दुकान से फ़ोन किया की वह अपना बैग घर में भूल गया है ,जल्दी से वह बैग दुकान पहुँचा दो । मैं उसका बैग लेकर घर से मोटरसाईकल पर दुकान की तरफ निकला। अभी आधी दुरी भी पार नहीं हुआ था की मोटरसाइकल की गति अपने आप धीरे होने लगी और  थोड़ी देर में मोटरसाइकिल बंद हो गयी। मैंने चेक किया तो पाया की मोटरसाइकल का पेट्रोल ख़त्म हो गया है। मैंने सोचा ये कैसे हो गया ! अभी कल तो ज्यादा पेट्रोल था ,किसी ने निकाल लिया क्या ! या फिर किसी ने इसका बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया होगा। मुझे एक बार घर से निकलते समय देख लेना चाहिए था। अब क्या करूँ ? मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है ?  मोटरसाइकिल चलाना  ऐसे समय पर भगवान की याद आ ही जाती है। मैंने भी मन ही मन भगवान को याद किया और कहा हे भगवान कैसे भी ये मोटरसाइकल चालू हो जाये और मैं पेट्रोल पंप तक पहुँच जाऊँ। भगवान से ऐसे प्रार्थना करने के बाद मैंने मोटरसाइकिल को किक मार कर चालू करने की बहुत कोशिश किया लेकिन मोटरसाइकल चालू नहीं हुई। और फिर मैंने ये मान लिया की पेट्रोल ख़त्म हो चूका है मोटरसाइकल ऐसे नहीं चलने वाली।  आखिर मुझे चलना तो है ही क्योंकि पेट

व्यवहारिक जीवन और शिक्षा

सुनें 👇 एक दिन दोपहर को अपने काम से थोड़ा ब्रेक लेकर जब मैं अपनी छत की गैलरी में टहल रहा था और धुप सेंक रहा था। अब क्या है की उस दिन ठंडी ज्यादा महसूस हो रही थी। तभी मेरी नज़र आसमान में उड़ती दो पतंगों पर पड़ी। उन पतंगों को देखकर अच्छा लग रहा था। उन पतंगों को देखकर मैं सोच रहा था ,कभी मैं भी जब बच्चा था और गांव में था तो मैं पतंग उड़ाने का शौकीन था। मैंने बहुत पतंगे उड़ाई हैं कभी खरीदकर तो कभी अख़बार से बनाकर। पता नहीं अब वैसे पतंग  उड़ा पाऊँगा की नहीं। गैलरी में खड़ा होना    पतंगों को उड़ते देखते हुए यही सब सोच रहा था। तभी मेरे किराये में रहने वाली एक महिला आयी हाथ में कुछ लेकर कपडे से ढके हुए और मम्मी के बारे में पूछा तो मैंने बताया नीचे होंगी रसोई में। वो नीचे चली गयी और मैं फिर से उन पतंगों की तरफ देखने लगा। मैंने देखा एक पतंग कट गयी और हवा में आज़ाद कहीं गिरने लगी। अगर अभी मैं बच्चा होता तो वो पतंग लूटने के लिए दौड़ पड़ता। उस कटी हुई पतंग को गिरते हुए देखते हुए मुझे अपने बचपन की वो शाम याद आ गई। हाथ में पतंग  मैं अपने गांव के घर के दो तले पर से पतंग उड़ा रहा था वो भी सिलाई वाली रील से। मैंने प

अनुभव पत्र

सुनें 👉 आज मैं बहुत दिनों बाद अपने ऑफिस गया लगभग एक साल बाद इस उम्मीद में की आज मुझे मेरा एक्सपीरियंस लेटर मिल जाएगा। वैसे मै ऑफिस दोबारा कभी नहीं जाना चाहता 😓लेकिन मजबूरी है 😓क्योंकि एक साल हो गए ऑफिस छोड़े हुए😎।नियम के मुताबिक ऑफिस छोड़ने के 45 दिन के बाद  मेरे ईमेल एकाउंट मे एक्सपीरियंस लेटर आ जाना चाहिए था☝। आखिर जिंदगी के पाँच साल उस ऑफिस में दिए हैं एक्सपीरियंस लेटर तो लेना ही चाहिए। मेरा काम वैसे तो सिर्फ 10 मिनट का है लेकिन देखता हूँ कितना समय लगता है😕।  समय  फिर याद आया कुणाल को तो बताना ही भूल गया😥। हमने तय किया था की एक्सपीरियंस लेटर लेने हम साथ में जायेंगे😇  सोचा चलो कोई बात नहीं ऑफिस पहुँच कर उसको फ़ोन कर दूंगा😑। मैं भी कौन सा ये सोच कर निकला था की ऑफिस जाना है एक्सपीरियंस लेटर लेने।आया तो दूसरे काम से था जो हुआ नहीं सोचा चलो ऑफिस में भी चल के देख लेत्ते हैं😊। आखिर आज नहीं जाऊंगा तो कभी तो जाना ही है इससे अच्छा आज ही चल लेते है👌। गाड़ी में पेट्रोल भी कम है उधर रास्ते में एटीएम भी है पैसे भी निकालने है और वापस आते वक़्त पेट्रोल भी भरा लूंगा👍।  ऑफिस जाना  पैसे निकालने