आजाद हो जाऊँ

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आज यूँ ही पैदल चलते चलते 

आजाद हो जाऊँ

हलकी हलकी हवा में

हिलते हुए पत्तों को निहारते निहारते 

भीड़ भाड़ और आती जाती गाड़ियों के शोर के बीच 

अपने अकेलेपन के साथ 

इस दुनिया की उलझनों को कह लीजिये या 

इस दुनिया की बेवकूफियों को कह लीजिये या  

कुछ और कह लीजिये को देखते समझते 

मन में ये ख्याल आया है की 

क्यों ना आज़ाद हो जाऊँ 

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बचपन से ही दिमाग में बाँधी हुई कुछ बेड़ियाँ हैं 

उन्हें तोड़ना अगर बरबादी है तो यही सही 

क्यों ना मैं बरबाद हो जाऊँ 

मन कहता है खुशी से जिओ ,खुल कर जिओ 

मन की इस बात को मानकर 

क्यों ना खुशियों की धारा में बह जाऊँ 

बहुत हो गयी दुनिया के नियमों की मानसिक गुलामी 

क्यों ना अब आजाद हो जाऊँ 

आजाद हो जाऊँ

अगर हमेसा खुश रहना नादानी है तो नादानी ही सही 

क्यों ना नादानी करके खुशियों से आबाद हो जाऊँ 

क्यों ना अब आजाद हो जाऊँ 


बीता हुआ कल सताता है 

आने वाला कल डराता है 

आने वाला पल अच्छा होगा ये उम्मीद का लालच देकर 

बेचैन करता है 

कभी मन को तो कभी तन को अंधाधुन भगाता है 

ना तो ये चैन से सोने देता है और ना ही समय पर चेताता है 

बीते हुए कल पर पछताने से और आने वाले कल से डरने से अच्छा है 

आज खुशियों भरे पल को महसूस करूँ और इनमें ही खोता चला जाऊँ 

बहुत हो गयी मानसिक गुलामी 

क्यों ना अब आजाद हो जाऊँ 


दुनियां की बनायीं बंदिशों की तकलीफों से घुट घुट कर जीने से अच्छा है 

नासमझी ही सही मन की खुशी से जिऊँ 

कुछ बड़ा कर पाऊँ या ना कर पाऊँ 

सबके लिए याद आने वाला खुशियों के पल बन जाऊँ 

आजाद हो जाऊँ

क्यों ना आजाद हो जाऊँ 


सफर है ये जिंदगी का ,एक दिन खत्म हो जाना है  

एक एक पल जरुरी है 

इसे तनाव में क्यों गवाऊं 

नहीं करनी है किसी से दुश्मनी ,सभी मेरे अपने 

ना कोई रिश्तेदार ,ना कोई पराया ,ना कोई रिवाज ,ना कोई बंधन 

खुली हवा की तरह खुशियों का झोंका बन कर 

इस सफर में बहता चला जाऊँ 

क्यों ना आज़ाद हो जाऊँ 

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