मन का रावण कब जलेगा (कविता)

मन का रावण कब जलेगा 

मन का रावण कब जलेगा (कविता)

जलते हैं हर साल पुतले 

देखकर जिसको मन तो बहले 

लेकिन अच्छाई से प्रेरित होकर मन कब बदलेगा 

मन का रावण कब जलेगा 

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लगते हैं हर साल मेले 

अपनों से मनमुटाव करके 

घूमते हैं भीड़ में अकेले 

अपनों से ये मनमुटाव कब मिटेगा 

मन का रावण कब जलेगा 


रावण भी मेहनती था ,बहादुर था ,विद्वान था 

लेकिन वो बुरी नियत और बुरे कर्मों के कारण एक प्रख्यात शैतान था 

आज का विद्वान ,मेहनती और बहादुर जवान अच्छी नियत और अच्छे कर्मों के लिए आगे कब बढ़ेगा 

मन का रावण कब जलेगा 

मन का रावण कब जलेगा (कविता)


देखते हो दूसरों में कमियां ,बुरी लगती हैं दूसरों की नादानियाँ 

अपने अंदर की कब पहचानोगे अच्छाइयाँ और खामियाँ 

हृदय का राम कब जगेगा 

मन का रावण कब जलेगा 


मन का रावण कब जलेगा (कविता)

लड़ते हो राम के नाम पर 

राम के चरित्र में त्याग था ,मर्यादा थी ,सादापन ,मानवता और प्रेम की भावना थी 

राम का चरित्र कब समझोगे 

जिसने अपनों के लिए महल छोड़ खुशी से वनवास अपना लिया 

वो अपने नाम पर फैलाये नफरत से खुश होगा ये हमने कैसे सोच लिया 

ऊपर से राम का आवरण है अंदर से रावण का आचरण है 

इंसान राम का आचरण कब समझेगा 

प्यार के नाम पर नफरत का व्यापार कब तक चलेगा 

मन का रावण कब जलेगा 


अपनी संतानों में राम की उम्मीद करने वाला पिता अपने अंदर दशरथ को कब ढूढ़ेगा 

मन का रावण कब जलेगा 

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