पुराने दिनों की कमी खलती है

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क्यों तड़पता है मन उन चीज़ों के लिए 

पुराने दिनों की कमी खलती है
purane din
जिन्हे मैं वापस पा नहीं सकता 

क्यों बार बार याद आते हैं वो दिन,वो जगहें, जहाँ मैं वापस जा नहीं सकता 

अगर चला भी जाऊँ तो वो गुजरे हुए समय को वापस ला नहीं सकता

जानता हूँ की समय बदलता रहता है 

दुनिया भी बदलती है 

और मन में नयी उम्मीदों की हवा भी चलती है 

फिर भी न जाने क्यों पुराने दिनों की कमी खलती है  

भूल भी कैसे सकता हूँ उन दिनों को 

चलती हुई हवा , हवा में लहराते हुए पेड़ और पौधे ,

पहली बारिश की खुशबू ,पक्षियों का चहचहाना ,

घर की छत पर टहलते हुए रात को आसमान में तारों का दिख जाना 

ये सब तो वही हैं 

हाँ,अब मैं बड़ा हो चूका हूँ 

पहले माँ और बाप के भरोसे था लेकिन अब अपने पैरों पर खड़ा हो चूका हूँ

किसी को मुझसे कुछ उम्मीदें होंगी

किसी के मन में मेरे लिए दुआएं होंगी 

किसी के मन में मेरी बर्बादी की तमन्ना होगी 

फिर भी न जाने क्यों पुराने दिनों की कमी खलती है 

बचपन भी बड़ा अजीब था ,सोचता था कब बड़े होंगे 

लेकिन आज लगता है धुआँ छोड़ने वाली गाड़ी से अच्छे तो बचपन के खिलौने ही थे 

सोच रहा हूँ इन पलों को भी जी लूँ खुशी से 

ये पल भी एक दिन याद आएंगे 

आगे वक़्त कैसा भी आये 

मुझे उम्मीद है ये पल मुस्कुराहट की वजह बन जायेंगे 


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