यादें - दूरदर्शन ,सिनेमा, मनोरंजन और बचपन
हम कितना भी आज में जी लें - हम कितना भी आज में जी लें , कितना भी अपने आप को समझा लें की जो बीत गया सो बीत गया अब आगे की सोचो लेकिन हमारा बचपन और उससे जुड़ी यादें ताज़ा हो ही जाती हैं। हमारे साथ कुछ ना कुछ ऐसा हो ही जाता है जिससे की गुजरे हुए पल की कोई तस्वीर या याद सामने आ ही जाती है। उस रात भी ऐसा ही हुआ। नवरात्र की रात और बचपन की याद - नवरात्र का समय चल रहा था। आसपास का माहौल त्यौहार के माहौल में ढल रहा था। माता के भक्ति वाले गाने बज रहे थे और डांडिया, गरबे वाले गाने भी बज रहे थे। मैं भी पास के मंदिर में से गाने और डांडिया का आनंद लेकर आके अपने बिस्तर पर लेटा था और साथ में मेरा बेटा भी सो रहा था। उस समय कमरे में मैं और मेरा बेटा ही थे। बाकी लोग अपने अपने काम निपटाने में व्यस्त रहे होंगे। मेरे बेटे को मेरे साथ बात करना और सोना बहुत अच्छा लगता है इसलिए जब भी मौका मिलता है वो मेरे साथ सो जाता है। अगले दिन उसके स्कूल की छुट्टी थी इसलिए उसने मेरे साथ थोड़ी देर तक ढेर सारी बातें की और सो गया। मैंने भी उसे बहुत सारे किस्से कहानियां सुनाया जो की मेरे बचपन की आदत है।...