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एक अनुभव -परिवार, स्टार्टअप और नौकरी का संघर्ष

बहुत लोग अच्छी नौकरी चाहते होंगे जिससे की वो अपने और अपने परिवार का खर्चा और जीवन अच्छे से चला सकें। बहुत लोग ऐसे भी होंगे जो नौकरी के बजाये अपना खुद का काम करना चाहते होंगे। इसके लिए वो मेहनत और जोखिम भी उठा रहे होंगे।  

बहुत लोग चाहते होंगे की उन्हें अपने ही शहर में और अपने ही घर के पास नौकरी करने का मौका मिले। क्योंकि अगर घर के पास में नौकरी मिल जाये तो आने जाने के खर्चे से लेकर कमरे का किराया तक का फायदा होता है और परिवार के साथ रहने का मौका तो मिलता ही है कम पगार की नौकरी में भी काफी बचत हो सकती है। 

एक अनुभव -परिवार, स्टार्टअप और नौकरी का संघर्ष

लेकिन पास में नौकरी करने के जितने फायदे हैं उसका नुकसान भी समझने लायक है। ऐसा नुकसान जो मेरे एक दोस्त राजन को हुआ था वो आप सबको भी जानना और समझना जरुरी है। क्योंकि ये घटना जो राजन के साथ हुई है वो किसी के भी साथ हो सकती है। हुआ ये था की राजन जो की अपना खुद का काम आगे बढ़ाने में लगा हुआ था। धीरे धीरे ही सही उसका काम सही दिशा में आगे बढ़ रहा था। ऐसा लग रहा था की बस अब कुछ दिनों की बात और है वो सफल हो जायेगा। सफल होने के बाद वो दिन भी दूर नहीं जब वो आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो जायेगा। उसके बाद राजन वो जीवन जियेगा जो वह जीना चाहता है। जैसे वह कभी भी अपने गांव में आ जा सकेगा। 

लेकिन वह कितना भी मेहनती हो और वह अपने सपने को पूरा करने के कितना भी करीब हो। वो है तो एक मध्यम वर्गीय परिवार का। उसे एक नौकरी होने और एक नियमित पगार की उम्मीद हमेशा रहती है। वो सोचता है की अगर अपने काम के साथ साथ कोई ऐसी नियमित पगार वाली नौकरी मिल जाती तो उसने जो काम घर से शुरू किया है उसमें थोड़ी आर्थिक मदद मिल जाती और हो सकता है भविष्य के लिए कुछ सेविंग भी हो जाती क्योंकि एक मध्यम वर्गीय परिवार के आदमी के लिए पूरा समय अपने स्टार्टअप के लिए संघर्ष करना और साथ में भविष्य के लिए रूपए जमा करना नामुमकिन ही होता है। अपने परिवार में स्टार्टअप करने वाला और इस तरह की सोच रखने वाला वो अकेला है। ऐसे में उसे अपने परिवार में भी काफी ताने सुनने पड़ते हैं। इसलिए वो हमेशा ज्यादा कुछ सोचे समझे और परखे बिना किसी भी नौकरी के लिए हाँ कर देता है। और बाद में उसे सिर्फ धोखा मिलता है। जो समय बर्बाद होता है सो अलग। 

एक अनुभव -परिवार, स्टार्टअप और नौकरी का संघर्ष

यहाँ ये भी कहना उचित है की जॉब के मामले में उसकी किस्मत बहुत ख़राब है। उसने जहाँ भी जॉब किया वहां उसे अच्छे लोग नहीं मिले। ज्यादातर नौकरी में ऐसे लोग मिले जो उसकी शराफत व सीधेपन का गलत फायदा उठाते हैं। ऐसा नहीं है की वो इन सब के खिलाफ बोलता नहीं है। लेकिन उसका स्वभाव चिल्लाना ,गाली देना या झगड़ा करना नहीं है। वो अक्सर बिना किसी को नुकसान पहुंचाए बातचीत से मामले को हल करने की कोशिश करता है। लेकिन ये उसकी बदकिस्मती, की बात बनती नहीं है और उसे अंततः वो नौकरी छोड़नी पड़ती है। वो भी बाहर वालों से कितना लड़े। अन्याय तो उसके साथ उसके घर में उसके अपने लोग भी करते हैं। आखिर उसके जैसे लोग किस किस से और कहाँ तक लड़ सकते हैं। जब तक की वो अपने काम में कामयाब ना हो जाएँ और समाज में एक दबदबा ना बना लें। क्योंकि ऐसे लोगों के जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय और कमाई हुई पूंजी उस काम में लगी होती है। 

जिसको पूरा करना उनके जीवन का एक सपना होता है और उसमें सिर्फ उनका ही नहीं बल्कि उनके देश और समाज की भी भलाई भी छिपी होती है। लेकिन दुनिया तो सिर्फ फायदे वाला परिणाम देखती है उसके पीछे का संघर्ष नहीं या फिर संघर्ष के दौरान मदद नहीं बल्कि ताने ही देते हैं। उदाहरण के लिए आप अगर इतिहास उठा कर देखें तो आपको कई ऐसे वैज्ञानिकों और विचारकों और समाजसेवकों के बारे में जानने को मिल जायेगा जो समाज की भलाई के लिए सही बात बोलते थे , कोशिश करते थे। लेकिन दुनिया उनको बेवकूफ और पागल समझती थी। लेकिन जब दुनिया के सामने परिणाम आया और उसमें उनको फायदा दिखा तो उसे अपना भी लिया। लेकिन अपनी गलती का कितने लोगों ने अहसास किया होगा और कितनों ने अपना नजरिया बदला होगा ये कहना मुश्किल है। 

राजन भी कुछ ऐसे ही हालात से गुजर रहा है। इस बार भी राजन ने नौकरी के बारे में ऐसी ही गलती कर दी जो उसने पहले किया था। अपनी आर्थिक स्तिथि की चिंता के कारण उसने ऐसी नौकरी के लिए हाँ कर दिया जिसमें उसने डिग्री नहीं लिया था बस उसे वो काम काफी हद तक आते थे।

एक अनुभव -परिवार, स्टार्टअप और नौकरी का संघर्ष

और एक खास बात ये थी की वो नौकरी उसके घर के बहुत पास थी और समय भी सुबह से दोपहर तक ही था। उसने सोचा अगर वो ये नौकरी कर लेता है तो उसके घर वाले भी उसे ताने मारने बंद कर देंगे। दोपहर को घर आने के बाद उसके पास अपने स्टार्टअप को आगे बढ़ाने का भी समय मिल जायेगा। हो सकता है वो आने वाले समय के लिए कुछ पैसे भी बचा ले। 

आगे होता ये है की जॉब ज्वाइन करने से पहले उसका एक एक्सीडेंट हो जाता है जिसमें उसकी जान जाते जाते बचती है। इस वजह से वो जहाँ जॉब करने वाला होता है वहां के बारे में जानकारी नहीं ले पाता है। क्योंकि उसके पास ये जानकारी थी की वो जिस कार्यालय में जिस पोस्ट पर काम करने जा रहा है वो पोस्ट के लिए पहले भी वेकन्सी निकली थी और कुछ ही महीनों में फिर से उसी पोस्ट के लिए वेकन्सी निकली है। वजह कुछ भी रही हो लेकिन ये नार्मल बात तो नहीं हो सकती है। लेकिन राजन भी क्या करता एक तो उसका जानलेवा एक्सीडेंट हो गया था और डॉक्टर ने उसे कम से कम २० -२५ दिन बेड रेस्ट करने के लिए कह दिया। लेकिन राजन के पास चार पांच दिन ही थे क्योंकि घरवाले नहीं चाहते थे की इस कारण उसकी ये जॉब चली जाए। घरवालों की खुशी के लिए राजन ने उस हालत में भी वो जॉब ज्वाइन कर लिया। 

वो उसी हालत में जैसे तैसे काम करने लगा। काम ज्यादातर कागज़ कलम और कम्प्यूटर में एंट्री करने का था एक जगह बैठकर इसलिए उस हालत में भी उसने काम बहुत ही अच्छे से संभल लिया। वो बिना कोई ब्रेक लिए काम लगातार करता और बहुत ही मन लगाकर करता क्योंकि वो काम उसे बहुत पसंद आ गए थे। 

कुछ दिनों तक तो सब ठीक चल रहा था। लेकिन कुछ दिनों बाद राजन को समझ में आने लगा की यहाँ का माहौल ठीक नहीं है। उसके सीनियर उसके लगातार काम करने के बावजूद भी बिना बात के बात बना कर उसको बहुत देर तक सुनाने लगे। एक तो लगातार काम ऊपर से बिना बात बहुत देर तक बातें सुनना वो भी उस हालत में जब राजन को बेडरेस्ट करना चाहिए। यहाँ तक की उसे बहुत ढीला आदमी भी कहा गया। ये बात उसके घर तक पहुंच गयी और घर वालों से ये बात जब राजन के कानों तक पहुंची तो उसे दुःख और गुस्सा दोनों आया।

वो ये भी समझ गया की इस ऑफिस में मानसिक उत्पीड़न और चुगलखोरी का मिलाजुला माहौल है और उसके जैसा आदमी यहाँ कितना भी सही काम कर ले और अनुशासन में रह ले वो यहाँ ज्यादा समय तक नहीं टिक सकता है और अगर राजन उस हालत में टिक गया तो बहुत ज्यादा मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो सकता है। ऐसा नहीं है की वो पहली बार कोई ऑफिस वाली नौकरी कर रहा है उसे पहले से भी अनुभव है की ऑफिस में क्या गलत और क्या सही हो सकता है। 

ये बात भी गौर करने लायक है की जो पगार और जो समय उसके ऑफर लेटर में दिया गया था। वो चीज़ें वास्तव में ऑफिस में बहुत अलग थी। उदाहरण के लिए उसके ऑफर लेटर में सिक्योरिटी अमाउंट काटने और कितना काटना है का कोई जिक्र नहीं था। ना ही मौखिक रूप से उसे बताया गया था। वो बात अलग है की जब उसने पूछा तो उसे बताया गया था की सिक्योरिटी अमाउंट काटी गयी है जो तीन महीने बाद उसे मिल जाएगी या जब वो जॉब छोड़ेगा कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार उसे मिल जाएगी। क्या पता बाद मिल जाये लेकिन ऐसे मामले में कुछ एकदम से पक्का कहना उचित नहीं है क्योंकि ऑफर लेटर में ऐसा कुछ है ही नहीं। 

सिर्फ यही बात नहीं थी उसे सुनाने को बहुत ज्यादा सुनाया जाता था लेकिन काम की बात नहीं बताई जाती थी। अगर वो काम की बात पूछ ले तो पहले तो टाला जाता था और अगर हिम्मत करके दुबारा पूछ ले तो उल्टा उससे ही सवाल पूछा जाता था और हमेशा ये कहा जाता था की आपको पता होना चाहिए। और अगर इस बात पर वो विनम्रता से ही कुछ कह दे तो ऑफिस समय ख़त्म होने के दौरान उसे किसी भी बहाने से बहुत ज्यादा बातें सुनाई जाती थी। जब भी वो अपनी बात रखनी चाहे उसकी बात को बीच में ही काट दिया जाता था। किसी भी मुद्दे पर अगर वो बात करना चाहे तो पूरी कोशिश की जाती थी की वो बोल ही ना पाए उसकी बात को बीच में ही काट कर उसको खरी खोटी सुना दिया जाता था। सिर्फ एक ही बात अच्छी थी वहां की गाली गलौच नहीं होती थी। होती भी कैसे वहां वाइट कालर लोगों की पत्नियां भी काम करती थी। 
इतना होने पर भी वो लोग अपने किये हुए बुरे बर्ताव को जस्टिफाय करने की कोशिश करते थे अपनी आपबीती और मनधडंग कहानी सुनाकर। 

राजन ने मुझसे और अन्य दोस्तों से इस बारे में बात की। इस दौरान मुझे और राजन को ये भी समझ में आया की आमतौर पर कॉन्ट्रैक्ट वाली जॉब करना ठीक नहीं होता है। आमतौर पर कॉन्ट्रैक्ट वाली जॉब करने वालों को बहुत तंग किया जाता है और दबाया जाता है। वैसे सब जगह तो ऐसा नहीं होता होगा। लेकिन बेचारे राजन की किस्मत ख़राब है इस मामले में। इसके बाद राजन और मुझे भी ये लगने लग गया की ये जॉब छोड़नी ही सही है लेकिन पहले दूसरी जॉब का इंतेज़ाम कर लेना सही रहेगा। 

और ये भी सही है की अगर समस्या है तो उसका समाधान भी है बस ढूढ़ना हमारा काम है। और समाधान मिल गया हमारे एक दोस्त जो की खुद का काम करता है उसे उसके साथ काम करने वाला और हाथ बंटाने वाला चाहिए। और अगर हाँथ बंटाने वाला दोस्त हो तो काम का काम भी हो जाये और समय भी अच्छा कट जाये। 
लेकिन राजन ने ये भी तय किया की कुछ दिन और ये जॉब करके देखते हैं क्या पता सब ठीक हो जाये। कभी कभी ऐसा भी होता है की शुरू में कुछ गलत चीज़ें होती हैं लेकिन बाद में सब ठीक हो जाता है। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं हुआ बात बढ़ती गयी। 

और राजन को अंततः रिजाइन करना पड़ा और उसके बाद भी उसके उस ऑफिस के माहौल ने पीछा नहीं छोड़ा। क्योंकि उसका घर उस ऑफिस के नज़दीक ही है तो उसकी छवि ख़राब करने के लिए कुछ दिनों तक बातें फैलाई गयी।

उसके परिवार में भी ज्यादातर लोग उसके खिलाफ ही रहते हैं खासकर उसके पिता जो मौके मिलते ही उसपर टूट पड़ते हैं। उस पर ये भी दबाव डाला गया उसके उस ऑफिस की तरफ से फ़ोन करके भी और परिवार की तरफ से भी की वो अपने हेड को फ़ोन करे और ये कहे की उसने जल्दबाज़ी में फैसला लिया है और वो फिर से ऑफिस ज्वाइन करना चाहता है। और सबकी बात मान कर उसने ऐसा किया भी। पहले तो हेड ने ना बोला लेकिन फिर कहा देखता हूँ।  और वो देखते ही रह गए। उसके बाद ऑफिस से किसी की कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही है। और घर में उसके परिवार द्वारा खासकर उसके पिता द्वारा आये दिन उस पर मानसिक प्रतारणा हो रही है।  वो भी आज कल के ऐसे त्यौहार के दिनों में। 

खैर राजन भी मेरी तरह लेखक है और किसी बात को लेकर उत्तेजना में फैसला लेने के बजाय बात को काफी गहराई तक सोचता है और सही कदम उठाने में विश्वास रखता है। मैं अपना दोस्ती का फ़र्ज़ तो निभाने की कोशिश तो कर ही रहा हूँ। बाकि दोस्त भी लगे हुए हैं सही रास्ता खोजने में। यहाँ राजन के पक्ष में ये बात बहुत सही है की उसके कम दोस्त हैं लेकिन ऐसे दोस्त हैं जो समय पड़ने पर उसकी मदद करने वाले हैं। 

मैंने ये लेख राजन को सहानुभूति दिलाने, किसी परिवार और ऑफिस के प्रति नफरत फैलाने के लिए नहीं बल्कि जागरूकता फ़ैलाने के लिए लिखा है। क्योंकि मैंने भी बचपन से ये सीखा है की नफरत पाप से करो पापी से नहीं। इस लेख में राजन नाम का जो पात्र है वो काल्पनिक है लेकिन जो बाते मैंने इस लेख में कही हैं वो सच में घटित हो रही हैं। ना जाने कितने राजन इस तरह के हालात का सामना कर रहे हैं। जो की सिर्फ एक सरल और बिना तनाव के जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। वो जो करना चाहते हैं उसमे सबकी भलाई है।
 
राजन के साथ जो भी हो रहा है उससे सबके समझने वाली कुछ बातें सामने आती हैं 

१.इतने सीधे मत बनिए की कोई भी आपको दबाने की कोशिश करे।
 
२.कहीं भी नौकरी करने से पहले उस नौकरी के बारे में ,वहां के लोगों के बारे में ,माहौल के बारे में अच्छी तरह से पता कर लें क्योंकि इससे आपके जीवन में परिवार में बहुत प्रभाव पड़ता है। नौकरी के लिए जल्दबाज़ी ना करें। गलत माहौल में नौकरी करने से कहीं अच्छा है बेरोज़गार रहना और अपना कुछ करना। 

३. अगर आप अपना खुद का स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं तो पहले आप ये शोध कर लें की आप कैसे लोगों के बीच रह रहे हैं। जैसे की परिवार के लोग और वो आपको सपोर्ट करते भी हैं या नहीं।आप उनको और वो आपको कितना समझते हैं। या सिर्फ अपनी मनमानी करते हैं आप पर, जैसे की राजन के साथ हो रहा है। 

४. अगर आप एक माध्यमवर्गीय परिवार से हैं तो आपको अपना स्टार्टअप शुरू करने से पहले अपने हालात के अनुसार स्टार्टअप से सम्बंधित सकारात्मक और नकारात्मक बातों को अच्छी तरह जानकार निष्कर्ष निकालें। इसमें बिलकुल भी जल्दबाज़ी ना करें भले ही कितना भी बोर लगे। हो सके तो थोड़ा ब्रेक लेकर काम करें लेकिन निष्कर्ष निकालने में जल्दबाज़ी ना करें। 

५. आप एक इंसान हैं। आप की एक हद है। ये सच है की जन्म से कोई बुरा या अच्छा पैदा नहीं होता है। लेकिन आप सबको नहीं सुधार सकते हैं। जितना वो सके बुरे लोगों से चाहे वो आपके अपने परिवार से हों, ऑफिस से हों या कहीं से भी हों। अगर वो बार बार आपको समझने के बजाये आपसे गलत बर्ताव कर रहे हैं और आपको बार बार मानसिक और शारीरिक पीड़ा हो रही है तो जितना हो सकते उनसे दुरी बनाइये। आप यहाँ अमर होकर नहीं आये हैं की जिंदगी भर आप चोट खाएं और सीखते जाएं और जिंदगी आपको और ज्यादा जीने का मौका नहीं देने वाली है। हाँ ये बात जरूर है की कोई भी कदम उठाने में जोखिम जरूर है और किसी भी तरह के काम को करने में संघर्ष करना ही है। संघर्ष से नहीं डरना है। लेकिन गलत लोगों के आगे झुककर अपना समय और जीवन नहीं बर्बाद करना है। 

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