पेन की तलाश

वो रविवार का दिन था और बाहर नाश्ता करना था क्योंकि रविवार के दिन होस्टल के मेस में खाना नहीं मिलता था। मैंने सोचा चलो आज थोड़ा बाहर घूमना भी हो जायेगा और एक पेन भी खरीदना है वो भी खरीद लूंगा। वैसे मुझे उस शहर में आये लगभग दो महीने ही हुए होंगे और काम की वजह से मैं अपने रूम से ज्यादा बाहर नहीं निकल पाता था। वैसे तो मेरा ज्यादातर काम लैपटॉप पर सर्च और टाइपिंग का ही होता है लेकिन मुझे शुरू से ही पेन से लिखने की आदत भी है। इसलिए उस दिन नयी पेन खरीदने की जरूरत भी पड़ गयी। सोचा चलो नाश्ता करने का साथ साथ पेन भी खरीद लूँगा और थोड़ा घूम भी लूंगा। 

पेन की तलाश

मैं सुबह ही अपने रूम में ताला लगाकर निकल पड़ा। मुहल्ले की गली से गुजरते समय मैंने एक कुत्ते को रोते हुए देखा और बुरा महसूस किया और मन ही मन भगवान से ये कहा की हे भगवान ये कैसी दुनिया है आपकी उसके लिए कुछ अच्छा कीजिये। शायद वो भूख से रो रहा था। वैसे मैं भी तो अपना पेट पालने के लिए ही कुछ समय से इस शहर में भटक रहा हूँ। बाकि सब भगवान पर छोड़ देते हैं और आगे अपने काम पर ध्यान देना चाहिए। एक जगह नाश्ता करने के बाद मैं पास के ही स्टेशनरी की दुकान पर गया। लेकिन दुकानदार किसी काम में बहुत ज्यादा व्यस्त था। बहुत इंतज़ार करने के बाद मैं चल पड़ा दूसरी स्टेशनरी की दूकान ढूढ़ने। फिर याद आया की मेडिकल से भी कुछ सामान लेना है और हो सकता है वहां पेन भी मिल जाये।  

उस मेडिकल पर बाकि सामान तो मिल गया लेकिन पेन नहीं मिला। मैं पेन की तलाश में चलता रहा। रास्ते में जितनी भी स्टेशनरी की दुकानें दिख रही थी सब बंद ही थी। मैंने सोचा पता नहीं आज पेन ले पाउँगा की नहीं। मैं चलता रहा एक जगह मेडिकल और जनरल स्टोर की दुकान दिखी। मैंने वहां पूछा तो उस दुकान वाले ने बताया की बाजु वाली जेरोक्स की दुकान में जाओ वहां पेन मिलेगा। उस दुकान में जाने के बाद दो पेन लेने के बाद जब पेमेंट की बारी आयी तो पता चला वहां ऑनलाइन पेमेंट की सुविधा नहीं है ,कैश देना पड़ेगा और मेरे पास कैश बिलकुल नहीं था। मुझे अब ऑनलाइन पेमेंट की ही आदत है। मैंने पूछा ऑनलाइन क्यों नहीं है। उन्होंने जवाब दिया की हमारे यहाँ १०,२०,५०,५ रूपए देने वाले लोग ही ज्यादा आते हैं। कभी बैंक में १० और २० रूपए का स्टेटमेंट आता है क्या। मैंने कहा आप भी अपनी जगह सही हैं और बिना पेन लिए ही वहां से चल पड़ा दूसरी दुकान की तलाश में। घूमते हुए और इधर उधर देखते हुए सोचा की चलो रोज कमरे में बंद होकर काम करता ही हूँ अगर आज थोड़ा देर ज्यादा घूम लिया तो क्या फर्क पड़ता है थोड़ा बदलाव तो चाहिये ही। कमाल है इतने बड़े शहर में एक पेन नहीं मिल रहा है।

ढूढ़ते ढूढ़ते कई जनरल स्टोर पर भी गया वहां भी पेन नहीं था और कई दुकाने तो बंद ही थी। मैं घूमते घूमते बहुत दूर तक निकल गया। फिर रुक गया ये सोचते हुए की बहुत आगे आ गया हूँ अब वापस मुड़ना चाहिए और देखते हैं कुछ दुकाने खुल गयी होंगी तो वही से ले लूंगा पेन। थोड़ा और चलने के बाद एक जनरल स्टोर दिखी लेकिन वहां भी पेन नहीं मिला। उसी दुकान के बाजु में खिलोने और स्टेशनरी दोनों की दुकान थी सोचा चलो देख लेता हूँ यहाँ भी अगर पेन नहीं मिला तो बेटे के लिए कोई खिलौना ही ले लूंगा अगर पसंद आया तो। उस दूकान पर जेल पेन था बॉल पेन नहीं था। मैंने कहा कमाल है एक घंटे से पेन ढूढ रहा हूँ मिल ही नहीं रहा है। दुकानदार ने कहा आज रविवार है ,छुट्टी है इसलिए आज दुकानें बंद ही रहेंगी ,आसपास देखो कोई दुकान खुली होगी तो मिल जाएगा। 

पेन की तलाश

मैं फिर से घूमने लगा इधर उधर देखते हुए बिलकुल अकेला। चलते हुए मन में ये गाना गुनगुनाता रहा "चल अकेला ,चल अकेला ,चल अकेला ,तेरा मेला पीछे छूटा साथी चल अकेला , चल अकेला ,चल अकेला ,चल अकेला"। ये गाना मैंने कहीं सुना था आज हालात के हिसाब से अपने आप मन में गुनगुनाने लगा और कल्पना करते हुए सोचने लगा की एक वीडियो बनाऊं और सोशल मीडिया पर डाल दूँ। फिर सामने ऊपर की तरफ दिखी एक स्टेशनरी की दुकान और मुझे याद आया की जब मैं पहली बार यहाँ आया था तब जो मकान मालिक का जो हेल्पर है वो मुझे यहीं लेकर आया था और यहाँ से मैंने ताला चाभी इत्यादि ख़रीदा था। और ये दुकान रूम के पास में ही है इतना घूमने के बाद आखिरकार ये दुकान मिल ही गयी। पहले यहीं पर नज़र पड़ जाती तो शायद इतना दूर घूमने की जरुरत नहीं पड़ती। उस दुकान में मुझे पेन भी मिल गयी और ऑनलाइन पेमेंट भी हो गया। और मैंने दो पेन ले लिया ये सोचकर की पता नहीं और कितने दिन इस शहर में रहना है बार बार क्यों खरीदना एक ज्यादा ले लेता हूँ आगे भी काम आएगा।

रूम में वापस लौटते समय काफी अच्छा महसूस हो रहा था और मन भी बहल गया था और अपने रोज करने वाले काम को पहले से ज्यादा करने की इच्छा या जज्बा कहूं महसूस कर रहा था। रूम में पहुँचने के बाद घर से मम्मी का फ़ोन आया थोड़ी  बातें हुई और मैं थोड़ा भावुक हुआ। और फिर हिम्मत करके अपना काम शुरू किया और खत्म भी किया। 

पेन की तलाश

इस घटना ने मुझे सोचने पर मजबूर किया की की ये सिर्फ मेरी कहानी नहीं है। ये सिर्फ एक पेन के बारे में नहीं है। ये सब जिंदगी के सफर और करियर में होता ही रहता है। बस मेरी जगह कोई दूसरा हो सकता है। पेन की जगह जिंदगी का कोई दूसरा लक्ष्य या कारण हो सकता है। इन सबमें अलग अलग रूप में  परेशानियां ,रुकावटें,डर ,जज़्बा ,भावनाएं,सफलता ,असफलता ,नए पुराने आइडियाज ,अच्छे बुरे अनुभव आते रहते हैं। अगर हम कोशिश करें तो जिंदगी के इस सफर को तमाम परेशानियां होते हुए भी आनंद लेते हुए जी सकते हैं। 

सबके जीवन में अपने अपने लक्ष्य हैं और परेशानियां हैं। इसलिए सबको समझते हुए खुद भी जिओ और बाकि सबको भी जीने दो। 

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