इस लेख में आप समझेंगे की कैसे राजन को अनजाने में ही सही, ये समझ में आया की बड़ों में और बच्चों में स्मार्टफ़ोन की लत की खास वजह क्या है और उसका क्या उपाय हो सकता है। ये लेख सच्ची घटना पर आधारित है।
उस दिन राजन के बेटे की छुट्टी थी। राजन की पत्नी काम से बाहर गयी हुई थी। राजन अपना काम घर से ही करता है इसलिए अपने काम के साथ साथ उसे आज बेटे को भी संभालना था। इसलिए वो बेटे को अपने घर में ही अलग से बने एक छोटी केबिन में ले गया ताकि अपना काम भी करता रहे और बेटे का भी ख्याल रख सके। घर में और भी लोग थे लेकिन उस दिन सब अपने अपने काम में व्यस्त थे।
बेटे की जिद पर उसने अपना स्मार्टफ़ोन बेटे को दे दिया ताकि बेटा अपने पसंद के कार्टून्स वगैरह देखता रहे और राजन अपना काम करता रहे बिना किसी डिस्टर्बेंस के। राजन अपना काम करता रहा और उसका बेटा स्मार्टफ़ोन पर अपने पसंद के वीडियोस देखता रहा।
दोपहर हो चुकी थी। खाने का समय भी हो गया था और काम से ब्रेक लेने का समय भी हो चूका था। राजन ने काम बंद किया और बेटे की तरफ देखा जो की अभी भी स्मार्ट फ़ोन में लगा हुआ था।
उसने अपने बेटे से कहा की चलो अब खाना खाते हैं और फ़ोन बंद करो बहुत देर से देख रहे हो। राजन का बेटा बहुत ज्यादा स्मार्टफ़ोन देखता है। स्कूल से आने की देर है की स्मार्टफ़ोन में देखना शुरू और एक बार देखता है तो देखता ही रहता है।
बहुत बार डांटना भी पड़ता है लेकिन डांटने और कठोरता दिखाने से कुछ समय तक तो बात बन जाती है लेकिन कुछ समय बाद फिर से वही स्मार्टफ़ोन में देखना शुरू।
राजन को इस बात की चिंता सताती है की उसका बेटा दिन पर दिन स्मार्टफ़ोन देखने की बुरी आदत का शिकार होता जा रहा है जो की अच्छा नहीं है। लेकिन क्या करें कोई सही या उचित उपाय भी तो नहीं समझ में आ रहा है। बच्चों पर कठोर होना या हमेशा डांटना ठीक नहीं है और समस्या का सही हल भी नहीं है।
ये समस्या सिर्फ एक उसके बेटे की ही नहीं है ये समस्या लगभग हर उस घर की है जहाँ स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल होता है। ये समस्या सिर्फ बच्चों में ही नहीं हर उम्र के लोगों में है।
राजन भी तो जब स्मार्टफ़ोन में कुछ देखना शुरू करता है तो भले ही वो ये सोचकर देखना शुरू करता है की चलो थोड़ी देर मनोरंजन के लिए देखूंगा। लेकिन थोड़ी देर में कहाँ मन भरता है। और इसमें बहुत सारा समय निकल जाता है।
कई बार तो ये जानते हुए की कम से कम अपने बेटे के सामने स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए उसे। क्योंकि उसका बेटा जब उसे ऐसा करते देखता होगा तो उसे लगता होगा की अगर पापा देख रहे हैं तो मैं भी देखूंगा इसमें कोई बुरी बात नहीं है।
लेकिन इस आदत पर विजय कैसे पाएं ये भी एक गंभीर समस्या है। लेकिन इसके आगे जो हुआ उससे राजन को ये समझ में आ गया की इस समस्या की असल में वजह क्या हो सकती है दूसरे शब्दों में कहा जाये तो इस समस्या की जड़ क्या है और साथ ही इसका उपाय क्या हो सकता है।
राजन ने अपना काम बंद करने के बाद बेटे से अपना स्मार्टफ़ोन लिया और बेटे को साथ लेकर खाना खाने चल पड़ा। खाना खाने के दौरान बेटे ने स्मार्टफ़ोन देखने की जिद किया तब राजन ने समझाया की आप सुबह से ही स्मार्टफ़ोन में लगातार देख रहे हो और मैं भी सुबह से ही लैपटॉप में लगातार देख रहा था। हम दोनों को अब अपनी आँखों को आराम देना चाहिए। इतना ज्यादा स्मार्टफ़ोन देखना ठीक नहीं है। थोड़ा जिद करने के बाद बेटा मान गया।
खाना खाने के बाद बेटा फिर से स्मार्टफ़ोन ढूंढ़ने लगा लेकिन स्मार्टफ़ोन मिला नहीं क्योंकि राजन ने स्मार्टफ़ोन उसकी पहुँच से दूर रख दिया था। बेटा बार बार राजन से जिद करने लगा की स्मार्टफ़ोन उसको दे दे और राजन उसे समझाने की कोशिश करने लगा।
इसी बीच दोनों बाप बेटे के बीच शरारत शुरु हो गयी। दोनों बिस्तर पर नकली फाइट करने लगे। कभी फिल्मी स्टाइल में मुंह से ढिशुम ढिशुम की आवाज निकालते हुए फाइट करते ,कभी एक दूसरे को बिस्तर पर पटकने लगते ,कभी एक दूसरे को गुदगुदी करते ,कभी एक दूसरे पर तकिया मारकर और फेंककर लड़ाई करते , कभी एक दूसरे को कुछ ऐसा बोल देते या मजाक उड़ाते जिससे की उन दोनों की हंसी से पूरा कमरा गूंज उठता।
बेटे को तो इन सब में मजा आ ही रहा था लेकिन राजन को भी इन सब में बहुत मजा आने लगा। कुछ समय के लिए राजन ये भूल गया की वो उस बच्चे का बाप है खुद बच्चा नहीं है। बहुत देर तक ये सब चलता रहा। ये तब तक चलता रहा जब तक की बेटे के ट्यूशन जाने का समय नहीं हो गया।
बेटे को ट्यूशन छोड़ने के बाद राजन ने गौर किया की जो समय बाप बेटे ने एक साथ मजे में गुजारा और जो भी हंसी मजाक और शरारत किया उस दौरान दोनों में से किसी को भी स्मार्टफ़ोन की जरूरत महसूस नहीं हुई। ज्यादातर ऐसा होता है की मन स्मार्ट फ़ोन देखने के लिए बेचैन होने लगता है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।
राजन को ये एहसास हो रहा था की हो ना हो स्मार्टफ़ोन की लत लगने का जो मुख्य कारण है वो हमारी लाइफ स्टाइल और अकेलापन है।
हमारी लाइफस्टाइल इतनी भागदौड़ और प्रतियोगिता भरी हो गयी है की हमारे पास किसी से सुख दुःख वाली बात करने का समय ही नहीं है। और हमारा नैतिक पतन भी इतना हो रहा है की दो लोग एक दूसरे को अच्छी लगने वाली बात कर ही नहीं पाते हैं।
हम या तो अपना स्टेटस दिखाने की कोशिश करते हैं। या किसी बात पर ये कॉम्पिटशन करने में लग जाते हैं की हम सही हैं तुमसे बेहतर हैं। कहीं कहीं तो किसी बात को लेकर झगड़ा तक शुरू हो जाता है तो कोई अपने गांव ,घर और अपनों से दूर अंदर से उदास है।
ऐसे में अकेलापन तो होगा ही क्योंकि जब किसी से किसी की नहीं बनेगी तो अकेलापन तो होगा ही और इसी अकेले पन के कारण ज्यादातर लोग इस्तेमाल करते हैं स्मार्टफ़ोन का क्योंकि इसमें सब कुछ होता है।
अपने अपने काम या इंटरेस्ट की चीज़ें ,मनोरंजन की चीज़ें और सबसे ख़ास बात है की अगर कुछ नहीं सूझ रहा है तो भी स्मार्टफ़ोन में रील्स देखना शुरू कर दो कुछ ना कुछ तो दिखता ही रहेगा और आपका समय कटता ही रहेगा।
यही हाल बच्चों के भी मामलों में है हम अपनी अपनी जगह इतने व्यस्त हैं की बच्चों के साथ बात करने और बिताने के लिए हमारे पास समय ही नहीं है। हम नौकरी या काम से ही इतना थक जाते हैं कभी मानसिक रूप से और शारीरिक रूप से की हमने अगर बच्चों के लिए समय निकाल भी लिए तो हमेशा गंभीर बातें ही करेंगे ,खिलौने और महँगी चीज़ों की बातें करेंगे। लेकिन हमारा ध्यान इस तरफ तो जाता ही नहीं है की वो जो बचपन है वो सिर्फ चीज़ें नहीं मांगता ,महँगी चीज़ें तो सिर्फ कुछ समय तक ही आकर्षित करती हैं।
उस बचपन को तो चाहिए अपनों का समय ,अच्छी लगने वाली बातें ,कुछ शरारतें ,बहुत सारी बिना लॉजिक की बातें ,थोड़ा प्यार दुलार। जाहिर सी बात है इन सबके अभाव में नादान और नन्हे बच्चों का ध्यान स्मार्टफ़ोन की तरफ ही जायेगा।
ज्यादातर तो ये भी देखने में आता है की हम बच्चों का ध्यान भटकाने के लिए और अपने काम में डिस्टर्बेंस ना हो खुद ही स्मार्टफ़ोन में उनकी पसंद की चीज़ें लगाकर दे देते हैं वो भी ऐसे समय में जब वो ठीक से चल और बोल भी नहीं पाते हैं।
हो ना हो स्मार्टफ़ोन की लत चाहे वो बच्चों में हो या बड़ों में हो उसकी खास वजह अकेलापन ही है। अब ये जो अकेलापन है इसकी वजह व्यक्तिगत तौर पर सबके लिए अलग अलग हो सकती है। और सबको इस अकेलेपन का अपने अपने तरीके से सही उपाय भी ढूँढ़ना होगा ताकि कहीं हम स्मार्टफ़ोन की दुनिया में इतने ना खो जाएँ की हम ये भूल जाएँ की हम इंसान हैं और सामाजिक प्राणी हैं और हमे अपने समाज में भी उठना बैठना है।
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