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सितारों के किस्से -जॉनी वॉकर की तरकीब

भले ही हम उस ज़माने के नहीं हैं लेकिन ये गाना हमारे कानों में कभी ना कभी तो पहुँच ही जाता है किसी तेल के प्रचार के माध्यम से या फिर किसी के द्वारा मजाक के माध्यम से इस गाने के बोल हैं -"सर जो तेरा चकराये या दिल डूबा जाये ,आजा प्यारे पास हमारे काहे घबराये, काहे घबराये "

सितारों के किस्से -जॉनी वॉकर की तरकीब

इस गाने में दिखने वाला कोई हीरो नहीं बल्कि गुजरे जमाने के एक बहुत ही मशहूर हास्य कलाकार जॉनी वॉकर हैं। लेकिन वो पहले से ही फिल्म लाइन के नहीं थे। वो फिल्म कलाकार बनने से पहले एक बस कंडक्टर थे। आज का ये लेख वो बस कंडक्टर कैसे बने इसी के बारे में है क्योंकि उनका बस कंडक्टर बनने का किस्सा भी काफी दिलचस्प है। 

ये किस्सा जॉनी वॉकर जी के पुत्र, व खुद भी एक एक्टर रहे , नासिर खान जी ने अपने एक यूट्यूब वीडियो में बताई थी।

कहानी शुरू होती है जॉनी वॉकर के बचपन से। तब वो जॉनी वॉकर नहीं बल्कि बदरुद्दीन थे। जॉनी वॉकर ये नाम तो उनका फ़िल्मी दुनिया में आने के बाद पड़ा था। लेकिन वो जॉनी वॉकर के नाम से मशहूर हैं तो उनके बारे में इसी नाम से बताना सही होगा। 

हुआ ये की एक बार बचपन में जॉनी जी की आंख में कुछ दिक्कत हुई थी।उनके माता-पिता उन्हें लोकल डिस्पेंसरी में ले गए। उस दिन वहां डॉक्टर नहीं थे। कपाउंडर था। उस कंपाउंडर ने जॉनी जी की आंख देखने के बाद उनकी आँख में गलत दवाई डाल दिया था। जॉनी जी की आंख में बहुत तेज़ दर्द हुआ। वो बहुत परेशान हुए। लेकिन कपाउंडर ने कहा कि कुछ देर में ठीक हो जाएगा। इन्हें घर ले जाओ। जॉनी जी के माता-पिता उन्हें घर ले आए।

अगले कुछ दिनों तक जॉनी जी की आंख में जलन होने के कुछ दिन बाद उनकी बांई आंख में धुंधलापन छा गया। बांई आंख से उन्हें कुछ भी साफ़ दिखना बंद हो गया था  और ये दिक्कत उनके साथ जिंदगी भर रही। समय गुजरता गया। एक आंख से कम दिखने की वजह से जॉनी जी देखने के लिए सारा ज़ोर अपनी सही वाली आंख पर डाला करते थे जिससे कि उनकी उस एक आंख की रोशनी तेज़ हो गई। और उनकी याद्दाश्त भी बहुत तेज़ हो गयी। यानि की अनजाने में जो उनका नुकसान हुआ उससे उनको फायदा भी हुआ। 

बड़े होने के बाद जब उन्होंने BEST में बस कंडक्टर की नौकरी के लिए अप्लाय किया तो उन्हें पता चला कि वहां तो नौकरी से पहले मेडिकल टेस्ट होता है। और जब उनका मेडिकल टेस्ट होगा तो आँख की वजह से वो मेडिकल टेस्ट में पक्का फेल हो जायेंगे। वो समय उनका ऐसा था की उन्हें किसी भी तरह से वो नौकरी चाहिए थी क्योंकि उन्हें नौकरी की सख्त जरुरत थी। तब उन्होंने सोचने के बाद एक तरकीब निकाला। मेडिकल जांच होने से एक दिन पहले वो सुबह जल्दी से BEST के ऑफिस पहुंचे और किसी तरह से मेडिकल रूम में जाकर आंखों के डॉक्टर की कुर्सी के पास लगे चार्ट को अच्छी तरह से याद कर लिया क्योंकि उनकी याददाश्त बहुत तेज़ तो थी ही। 

अगले दिन जब डॉक्टर ने मेडिकल टेस्ट के दौरान आँखों के टेस्ट लेने के लिए चार्ट पर लिखे हुए अक्षरों को पढ़ने के लिए कहा तो जॉनी वॉकर ने बारी बारी से दोनों आँखों को दबाकर फटाफट पढ़ लिया और बायीं आँख ख़राब होने के बावजूद भी उन्होंने मेडिकल टेस्ट पास कर लिए। और काफी समय तक वो उस नौकरी को करते रहे। 

सितारों के किस्से -जॉनी वॉकर की तरकीब

इसमें कोई संदेह नहीं की अपने शार्प मेमोरी के बलबूते और समझदारी से तरकीब निकालकर आखिरकार नामुमकिन लगने वाली नौकरी को पाने में वो कामयाब हुए। मैं ये तो नहीं कहता की हमे कोई चीज़ हासिल करने या अपने पक्ष में करने के लिए कोई गलत तरीका अपनाना चाहिए।

सितारों के किस्से -जॉनी वॉकर की तरकीब

लेकिन कभी कभी हालात ऐसे हो जाते हैं की हमें अपने हुनर और समझदारी से कोई ऐसी तरकीब निकालनी पड़ती है जो कहने को तो गलत लगती है लेकिन उसमें सबकी भलाई छुपी होती है। जैसे अगर जॉनी वॉकर जी ये सोचा होता की नहीं ये गलत है मुझे ऐसा रास्ता नहीं अपनाना चाहिए तो उनको वो नौकरी कभी नहीं मिल पाती और ना उस समय वो अपने और अपने परिवार के लिए कुछ अच्छा कर पाते। उनकी ये कहानी जानने के बाद यही लगता है की उन्होंने जो भी किया उसके पीछे उनकी नियत अच्छी थी। 

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References -

https://kissatv.com/kissa-johnny-walker-ke-bachpan-ka/

https://www.google.com/search?q=%E0%A4%9C%E0%A5%89%E0%A4%A8%E0%A5%80+%E0%A4%B5%E0%A5%89%E0%A4%95%E0%A4%B0&rlz=1C1CHBD_enIN1121IN1121&oq=%E0%A4%9C%E0%A5%89%E0%A4%A8%E0%A5%80+%E0%A4%B5%E0%A5%89%E0%A4%95%E0%A4%B0&gs_lcrp=EgZjaHJvbWUqCggAEAAY4wIYgAQyCggAEAAY4wIYgAQyBwgBEC4YgAQyBwgCEAAYgAQyBwgDEAAYgAQyBwgEEAAYgAQyBwgFEAAYgAQyBwgGEAAYgAQyBwgHEAAYgAQyBwgIEAAYgAQyBwgJEAAYgATSAQkyMzQzajBqMTWoAgywAgHxBXhIYrt0y1Cz&sourceid=chrome&ie=UTF-8

https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%89%E0%A4%A8%E0%A5%80_%E0%A4%B5%E0%A5%89%E0%A4%95%E0%A4%B0_(%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AF_%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A4%BE)#:~:text=%E0%A4%9C%E0%A5%89%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%B5%E0%A5%89%E0%A4%95%E0%A4%B0%20(%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%2011%20%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%B0,%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%20%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%80%20%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A5%A4&text=%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B0%20%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%20%E0%A4%9C%E0%A4%97%E0%A4%A4,%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%A4%20%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%B9%E0%A5%8B%20%E0%A4%97%E0%A4%8F%E0%A5%A4

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